Sunday, October 28, 2012

GaLaT the...

I would love a share a poem written y my old school buddy. I came across it today and loved it personally, a nice upcoming artist.please comment if you find ti worthy.

Love,


Link :- http://aakashjoshi2620.blogspot.in/2012/10/poem-galat.html

Poem : GALAT

Path galat the ,
                 Rath galat the,
Jivan me liye sankalp galat the,

Galat tha vo daur , mere liye
                  Us dur ke waqt galat the

Galat thi vo baarish ki bunde,
                  Vo lehro ke shoor galat the,


Galat the vo bhoor subah ke undhere,
                     Vo shaam ke ujale galat the

Galat thi vo apno ki be-rukhi ,
                    Vo gero ke apnepan galat the

Galat the vo pyaar bhare apsaane,
                      Vo nafrat ke zamane galat the

Galat the vo sapne suhaane,
                      Vo hakikat ke paemane galat the

Galat thi vo sahi soch zindagi ki,
                      Us sahi soch ke har mayne galat the

                                                 -------------------Aakash Joshi

Friday, May 25, 2012

बदनाम गलिया..


क्यों उन बदनाम गलियों की चीखें सुनाई नहीं देती,
क्यों उन जंजीरों की बंदिश दिखयी नहीं देती ,
कोई ढूँढता है खुशी वाहन, कोई ढूँढता लालसा,
पल्लू पकडे है खड़ी एक सहेमी सी नज़र,
ठंडी साँसों से हें पूछती बता मेरा नाम हें क्या |

अमीरों की टोली में है चर्चे हज़ार उनके,
जिल्लत और बेबसी, है घनिष्ठ मित्र उनके,
यूं तो जातें हैं सभी कहने को मर्द वाहन,
क्या हकिकत में नहीं कोई मर्द यहाँ?
शायद मर्दानगी से इज्ज़त कहीं ऊपर होती है,
तभी मेरी गुडिया, आँखों में अनसु लिए सोती है !

एसी इज्ज़त के धकोंसले भी क्या कामके,
जो किसी और की इज्ज़त ना कर सके,
हाँ शायद लिखता हू में आवारा, शायद सोच भी हें मेरी आवारा,
लेकिन उन रूहों का क्या जो इस आवारा जिंदगी के बोझ तले आज़ादी हें मांगती?
सुन्दर शरीर की होड में , रूह कही पीछे छूट गयी ,
बना दिया उनको सिर्फ एक शापित शब् |

अब स्त्रैण कत्पुत्लो की महफ़िल में उछलेंगे मर्दानगी के मुद्दे,
फिर होंगी बैठके निर्लाजो की समाज की व्याख्या पर,
अब ये सिखाएंगे हमे संस्कृति, जो खुद स्त्री की इज्ज़त करना नहीं जानते !
अच्छा हुवा इश्वर चले गए यहाँ से,
धरा की एसी हालत देख के वो भी रोये होते |

उन्हें भी तो चाहिए प्रेम, सन्मान, एक अपनापन,
लेकिन ये हवास के पुतले क्या जाने, की औरत आखिर क्या होती है !


क्यों उन बदनाम गलियों की चीखें सुनाई नहीं देती,
क्यों उन जंजीरों की बंदिश दिखयी नहीं देती... 

Friday, December 23, 2011

The clock i hear...

There is a clock ticking here, with every step I take I hear

There are the dreams coming near, with every step I take I hear

The cries of fear i hear, will soon disappear,

Are you the one, who’s dear,

For whom I’ve been waiting year after year,

The glass of wine is full of beer,

Please empty it as I hear,

There is a clock ticking here, with every step I take I hear

Friday, October 14, 2011

इन्तेज़ार...

इन्तेज़ार की तो बात ही निराली हे, अब क्या सुनाये हम आपको,

जेसे नशीला रखा कोई जाम , अब क्या पिलाये हम आपको |

ना जाने क्यों, लोग मिलने को बावरे हुवे फिरते हैं,

मिलके तो आखिर बिछड ही जाना हे सबको |

बस एक इन्तेज़ार ही तो हे , जो कभी बिछड़ता नहीं जिंदगी से,

मंजिलें तो मिलनी ही हे, बशर्ते आप रस्ते काटिए तो जिंदा-दिली से.. ||

Sunday, October 9, 2011

બગડવું કોને કેહવાય.... હજી તને ક્યાં ખબર છે..!

બગડવું કોને કેહવાય હજી તમે ક્યાં ખબર છે,

હસવું કોને કેહવાય હજી તને ક્યાં ખબર છે,

ભાગવા દુપટ્ટા પાચળ ભાગનારા,

મર્મ કેસરી કોને કેહવાય હજી તને ક્યાં ખબર છે..


સુખનો દરિયો જોઈ, મન-ઓ-મન તું મલકાય,

હાય, દુખના દહ્ડા આવે જો, જીવ તારો કપાય,

જોઈ બીજા ની ડૂબતી નાવડી, તું ઘણું હરખાય,

ગેહરાઈ કોને કેહવાય હજી તને ક્યાં ખબર છે..


તારા તો માથા એ કાળા,

ને તારા લખેલા અક્ષરો એ કાળા,

મધરાત્રી એ જ્હુમતી તાવએફ ના ચરિત્ર પર ટીપ્પણી કરનારા,

લાચારી કોને કેહવાય હજી તને ક્યાં ખબર છે..


દુનિયા ના ઘોંઘાટ માં અવાજ રે તારો દબાય,

પરંતુ ઘરની સ્ત્રી ઓ પર તારો પુરુષાર્થ ૧૦૦% દેખાય,

પોતાને ભાયડો સમજવાની ગલાત્ફેમી માં જીવનારા ,

જીવનસાથી કોને કેહવાય હજી તને ક્યાં ખબર છે..


ડંફાસ હક્વામાં તો તને પેહલો નંબર લીધો,

ડાહપણ નો રેલો તે આખા સમાજ ને દીધો,

થાય કોપાયમાન એ દંભી મોઢા જો,

ઝમીર વેચી, તેની હવસ સંતોષનારા,

ખુમારી કોને કેહવાય હજી તને ક્યાં ખબર છે..


બગડવું કોને કેહવાય હજી તને ક્યાં ખબર છે,

હસવું કોને કેહવાય હજી તને ક્યાં ખબર છે..

Wednesday, October 5, 2011

ये आँखे ..

इन आँखों की अजीब हे एक दुनिया,
दिखाती जो हे जिंदगी, देखती ये चुप-चाप,
कभी एक रौशनी , कभी एक ज़लज़ला,
जेसे तो कभी कहीं उमड़ा एक सराब ..

कुछ ना बोले , पर सब कुछ समझती,
कभी ये ठगती , तो कभी कातिल अदा से जान भी ये लेती जिंदगी,
जताओ सी उलझी , माँ सी सुलझी,
फिर भी ना जाने क्या हे ये कहती..

खुद ही के अक्स को ये देखती,
खुदही पे हे हस्ती, तो कभी खुदही से उदास,
बिखरते पत्तों सी ये ,
कभी न थमती , न रूकती,
न जाने किसे ये रहती हे धुन्दती ,
कभी दूर तो कभी पास...

-- मवेरिक्क

Thursday, September 29, 2011

Kuchh Alfaaz. Rooh ki aawaz..

नन्हे कदम लेकर आये थे हम, किलकारियों का शोर लेकर आये थे हम,

अनजानापन, मासूमियत, और खुदा का नूर लेकर आये थे हम |

देखा यहाँ तो हर पल हे बदलता मौसम ,बांटी थोड़ी खुशियाँ , पिए थोड़े गम

ये तो हे ज़रूर किसीकी दुवाओं का दम , वीरानियों के मंज़र में मिले आप और हम |

मलाल तो बस इसी बात का रह गया , की जी भरकर आपको बतिया भी न सके हम ,

ये सैलाब जो उमडा था रूह में , उसे दिल-ओ-जान से बहा भी न सके हम |

यू तो अपने सीने में लिए फिरते हे प्यार का दरिया ,

बावजूद इसके आपकी की प्यास भी बुझा न सके हम |

प्यास के तो किया कहने हे , उसकी तो अपनी ही एक कशिश हे ,

आपके चले जाने की , अब हमे न कोई रंजिश हे ,

लेकिन मर-जायेंगे मिट-जायेंगे अगर आपकी यादे-ए-आशियाँ में एक घरौंदा भी बना न सके हम |

अब तो हुवा हे ये मंज़र , बड़े हो गए हे पैर ,

और छोटी हो गई हे चद्दर ,

या खुदा यकीं नहीं आता ,

नन्हे कदम लेकर आये थे हम, किलकारियों का शोर लेकर आये थे हम ||


Tuesday, June 7, 2011

A-Blockade

Suddenly in life you find yourself in a blackhole. Nothing beyond it is visible, may be its because God is yet scripting your story, and he wishes you don't have a look at it, till he finishes to pen it :)

Maybe that is why we have dark clouds in monsoon and then receive a beautiful rainfall. Yes because dark is beautiful if you can see it that way. Else its just a blackhole.

NOthing much to say as of for now, till write soon.. :) take care.. stay healthy, stay fit..

Monday, February 21, 2011

Aawara..


A poem that randomly burst out of my heart today. I didn't want to miss the opportunity to pen it, so that i shall cherish it the rest of my times..


* ये केसी कशिश थी तुम्हारी, छोड़ गई एक कसक दिल में,
रूह में कर गई एक छेद, जो ना भरे, ना गड़े,
बस धसता चला जाय अंदर, जेसे बिखरा कोई शीशा गिरे आवारा,
काले बदल का अक्स आवारा , उडती फिजा का शोर आवारा,
एक उड़ता परिंदा भी उड़े आवारा, मन पे ना चले कोई जोर आवारा ||

-Maverick